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Hridaynath Mangeshkar Honours Legacy Of Love & Reverence On Entering His Glorious 89th Year With Didi Aani Mee

Hridaynath Mangeshkar Honours  Legacy Of Love & Reverence  On  Entering His Glorious 89th Year With Didi Aani Mee

The lights dimmed at Pandit Deenanath Mangeshkar Sabhagruha, but silence came first — not the silence of emptiness, but the silence before prayer. Didi Aani Mee was not a concert; it felt like a return to a home built of notes and memory. It honoured Bharat Ratna Lata Mangeshkar and heralded the 89th birthday of Bhav Gandharva Pandit Hridaynath Mangeshkar — the younger brother who still speaks of her as an elder, a mentor, a divine force.

The Mangeshkar family —  Hridaynath Mangeshkar, Bharati Mangeshkar, Usha Mangeshkar, Meena Mangeshkar,  Adinath Mangeshkar — were present as guardians of an inheritance crafted by discipline, humility and sacred silences. Hon. Ashish Shelar, Dr. Anil Kakodkar, Swami Janmejayraje Vijaysinhraje Bhosale Maharaj of Akkalkot, Gautam Thakur, and artistes Roopkumar and Sonali Rathod were present — not merely as guests, but as witnesses to history breathing gently on stage.

When Hridaynath ji spoke, his words felt like a prayer whispered to his sister. “For us, Didi was the commander — the Senapati. We are only her soldiers. We simply follow the path she created. Her discipline, her dignity and her devotion to music still guide me every day.” The hall did not applaud; it absorbed.

Ashish Shelar shared stories the nation rarely heard — of Lata Didi speaking at Prabhu Kunj during photographer Mohan Bane’s book launch, describing cricket with such precision that even seasoned sportsmen were left astonished. And how, in this very auditorium, she once discussed ancient composers and India’s musical history with Hon. Home Minister Amit Shah — with such clarity that even time stood still to listen. “Her voice was immortal,” he said, “but so was her mind.”

Then came a moment of quiet grace. Swami Janmejayraje Vijaysinhraje Bhosale Maharaj, head of the royal house of Akkalkot, rose and said softly, “To be present here today is a blessing. To receive the affection and ashirwad of such an illustrious family like the Mangeshkars is my honour.” It was not a blessing offered — it was respect returned.

And then, legacy became commitment. In honour of Hridaynath Mangeshkar’s birthday, the Master Deenanath Mangeshkar Smruti Pratishthan made an announcement from the stage. They spoke of how the Trust was founded in 1988 by the Mangeshkar family to preserve the memory of Master Deenanath Mangeshkar and to organise his annual remembrance ceremony on 24 April — a tradition upheld continuously for 36 years. On that day, stalwarts from various fields are honoured, and music flows as prayer. The Trust has honoured over 225 personalities so far and supported many artists in need.

Since 2022, the Trust has also been bestowing the Lata Deenanath Mangeshkar Award to individuals who have made unparalleled contributions to India. The recipients so far — Hon. Prime Minister Narendra Modi, Asha Bhosle, Amitabh Bachchan and Kumar Mangalam Birla — reflect the magnitude of this honour.

Ravindra Joshi, Trustee of the Pratishtaan, further announced that every 28 September, Lata Didi’s birthday, a special musical programme is held in Pune, where young artists are blessed by Pandit Hridaynath Mangeshkar. The programme has become a tradition — complete with music, memories, and a meal prepared with Lata Didi’s favourite dishes. To ensure that this legacy continues forever, the Trust declared the creation of a separate permanent fund. All income generated from this fund will be dedicated exclusively to organising this annual programme. A committee — Hridaynath Mangeshkar, Bharati Mangeshkar, Usha Mangeshkar,  Adinath Mangeshkar, Swami Janmejayraje Vijaysinhraje Bhosale Maharaj, Ravindra Joshi, Shirish Rairikar, and Nischal Latad will oversee it. And as the first offering, Hridaynath Mangeshkar himself announced a contribution of ₹25 lakh. Contributions from well-wishers were welcomed with grace. The Trust remains a registered public charitable institution in Pune, eligible for income tax exemptions on donations.

The evening ended not with applause, but with folded hands, moist eyes and quiet reverence. Because some lives do not end — they become the air left behind after music stops.

 
Hridaynath Mangeshkar Honours  Legacy Of Love & Reverence  On  Entering His Glorious 89th Year With Didi Aani Mee

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दिदी आनी मी – संगीत, स्मृति और सम्मान की मधुर संध्या, जहां पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर ने अपने 89वें वर्ष की शुरुआत पर भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रति प्रेम और कृतज्ञता को प्रणाम किया

दिदी आनी मी – संगीत, स्मृति और सम्मान की मधुर संध्या, जहां पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर ने अपने 89वें वर्ष की शुरुआत पर भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रति प्रेम और कृतज्ञता को प्रणाम किया

मुंबई के पंडित दीनानाथ मंगेशकर सभागृह में जब रोशनी धीमी हुई, तो सबसे पहले शांति उतरी — वह शांति जो आरती से पहले होती है, स्मरण से पहले होती है। ‘दिदी आनी मी’ सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह स्वर और स्मृति से सजे हुए उस घर की वापसी थी, जिसका नाम है — लता मंगेशकर। इसी भावनाओं से भरे वातावरण में पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर ने अपने जीवन के 89वें वर्ष में प्रवेश किया — वही ह्रदयनाथ जी, जो आज भी अपनी बहन को आदर से “दिदी” कहकर याद करते हैं।

मंच पर मंगेशकर परिवार की उपस्थिति स्वयं विरासत की प्रतीक थी — पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर, भारती मंगेशकर, उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आदिनाथ मंगेशकर। इनके साथ माननीय अशिष शेलार, प्रतिष्ठित वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर, अक्कलकोट राजघराने के स्वामी जंजमेयराजे विजयसिंहराजे भोसले महाराज, सारस्वत बैंक के सीएमडी गौतम ठाकुर तथा कलाकार रूपकुमार और सोनाली राठौड़ भी इस संध्या के साक्षी बने।

जब पंडित ह्रदयनाथ जी ने मंच संभाला, तो उनके शब्द प्रार्थना की तरह लगे। उन्होंने कहा — “हम सबके लिए दिदी सेनापति थीं। हम तो बस उनके सैनिक हैं। उन्होंने जो राह दिखाई, हम केवल उसी पर चल रहे हैं। उनकी अनुशासन, उनकी मर्यादा और संगीत के प्रति उनका समर्पण आज भी मेरा मार्गदर्शन करता है।” पूरा सभागार उनकी भावनाओं के साथ स्थिर हो गया।

माननीय अशिष शेलार ने लता दीदी की बुद्धिमत्ता और गहराई को याद करते हुए बताया कि प्रभुकुंज में फोटोग्राफर मोहन बाणे की पुस्तक के विमोचन के समय उन्होंने क्रिकेट पर ऐसी सटीक समझ के साथ बात की कि सब दंग रह गए। और कैसे इसी सभागार में उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह के साथ संगीतकारों और भारतीय संगीत इतिहास पर ऐसा गहन संवाद किया कि समय भी ठहरता-सा लगने लगा। उन्होंने कहा — “उनकी आवाज़ अमर थी, लेकिन उनका मस्तिष्क भी उतना ही अद्वितीय था।”

इसी दौरान अक्कलकोट के स्वामी जंजमेयराजे विजयसिंहराजे भोसले महाराज ने विनम्रता से कहा —“आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए आशीर्वाद के समान है। मंगेशकर जैसे महान परिवार का स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त करना मेरे लिए सम्मान है।”उनके यह शब्द आशीर्वाद नहीं, विनम्रता से झुका हुआ मस्तक थे।

इसके बाद स्मृति से संकल्प की ओर बढ़ते हुए मास्टर दीनानाथ मंगेशकर स्मृति प्रतिष्ठान ने घोषणा की। बताया गया कि यह ट्रस्ट वर्ष 1988 में मंगेशकर परिवार द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य हर वर्ष 24 अप्रैल को मास्टर दीनानाथ जी की पुण्यतिथि पर स्मृति समारोह आयोजित करना है। पिछले 36 वर्षों से यह परंपरा बिना रुके निभाई जा रही है, और अब तक 225 से अधिक विभूतियों को सम्मानित किया जा चुका है।

सन् 2022 से इस प्रतिष्ठान द्वारा ‘लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार’ भी प्रदान किया जा रहा है — जिसके अब तक के प्राप्तकर्ता हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आशा भोसले, अमिताभ बच्चन और कुमाfर मंगलम बिड़ला।

ट्रस्टी रविंद्र जोशी ने घोषणा की कि हर वर्ष 28 सितंबर — लता दीदी का जन्मदिन — पुणे में आयोजित होने वाले इस विशेष संगीत समारोह को सदैव जारी रखने के लिए एक स्थायी निधि (Corpus Fund) बनाई जा रही है। इस निधि से होने वाली आय केवल इस वार्षिक स्मृति कार्यक्रम के लिए उपयोग की जाएगी। इस समिति में पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर, भारती मंगेशकर, उषा मंगेशकर, आदिनाथ मंगेशकर, स्वामी जंजमेयराजे विजयसिंहराजे भोसले महाराज, रविंद्र जोशी,a dm शिरीष रैरीकर और निष्कल लताड़ शामिल रहेंगे। इस निधि के प्रारंभ हेतु पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर ने स्वयं ₹25 लाख का योगदान घोषित किया।

यह प्रतिष्ठान पुणे के चैरिटी कमिश्नर कार्यालय में पंजीकृत है तथा आयकर विभाग द्वारा अनुमोदित है, जिससे दी गई दानराशि पर आयकर में छूट का लाभ मिलता है।

संध्या का समापन तालियों से नहीं, बल्कि भीगी आंखों, जुड़ी हथेलियों और मौन श्रद्धा से हुआ। कुछ आवाज़ें समाप्त नहीं होतीं — वे हवा बनकर हमारे साथ रहती हैं, संगीत रुकने के बाद भी ।

 
दिदी आनी मी – संगीत, स्मृति और सम्मान की मधुर संध्या, जहां पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर ने अपने 89वें वर्ष की शुरुआत पर भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रति प्रेम और कृतज्ञता को प्रणाम किया

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‘दिदी आणी मी’ — संगीत, स्मृती आणि स्नेहाचा सोहळा, पं. ह्रदयनाथ मंगेशकर यांनी भारतरत्न लता दीदींच्या प्रेम व परंपरेला दिलेली कृतज्ञ अभिवादनाअंतर्गत त्यांच्या ८९ व्या वर्षात प्रवेशाचा भावपूर्ण उत्सव

‘दिदी आणी मी’ — संगीत, स्मृती आणि स्नेहाचा सोहळा, पं. ह्रदयनाथ मंगेशकर यांनी भारतरत्न लता दीदींच्या प्रेम व परंपरेला दिलेली कृतज्ञ अभिवादनाअंतर्गत त्यांच्या ८९ व्या वर्षात प्रवेशाचा भावपूर्ण उत्सव

पंडित दीनानाथ मंगेशकर सभागृहात दिवे मंदावले आणि पहिल्यांदा शांतता उतरली — रिकामेपणाची नाही, तर प्रार्थनेपूर्वीची. ‘दिदी आणी मी’ हा केवळ एक कार्यक्रम नव्हता; तो सुरांच्या घरात पुन्हा परतण्याचा क्षण होता. हा सोहळा भारतरत्न लता मंगेशकर यांना समर्पित होता आणि त्याच वेळी भाऊगंधर्व पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर यांच्या ८९ व्या वर्षाच्या प्रारंभाचा साक्षीदारदेखील होता — तेच ह्रदयनाथजी, जे आजही त्यांना ‘दिदी’ म्हणूनच स्मरतात — मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत, आणि कृपेचे अधिष्ठान.

ह्रदयनाथ मंगेशकर, भारती मंगेशकर, उषा मंगेशकर, मीनाताई मंगेशकर, आदिनाथ मंगेशकर — हे सर्व परिवारातील ज्येष्ठ आणि वारशाचे संरक्षक उपस्थित होते. या क्षणाचे साक्षीदार होते — मा. अशिष शेलार, डॉ. अनिल काकोडकर, अक्कलकोट संस्थानचे महाराज श्री स्वामी जंजमेयराजे विजयसिंहराजे भोसले, गौतम ठाकूर, रूपकुमार आणि सोनाली राठोड — पाहुणे म्हणून नव्हे, तर इतिहासाला साक्ष देणारे साक्षीदार म्हणून.

जेव्हा ह्रदयनाथजी बोलायला उठले, त्यांचे शब्द बहिणीला वाहिलेल्या शांत प्रार्थनेसारखे वाटले. त्यांनी सांगितले — “आमच्यासाठी दिदी म्हणजे सेनापती. आम्ही फक्त त्यांचे सैनिक. त्यांनी दाखवलेला मार्गच आम्ही चालत आलो आहोत. त्यांची शिस्त, त्यांची मर्यादा, संगीताशी त्यांचं निष्ठावान नातं — हेच अजूनही आम्हाला मार्ग दाखवतं.” सभागृह थबकलं — टाळ्यांसाठी नव्हे, तर भावनांना मोकळं होण्यासाठी.

यानंतर मा. अशिष शेलार यांनी लतादीदींच्या अलभ्य आठवणी उलगडल्या. प्रभुकुंज येथे छायाचित्रकार मोहन बाणे यांच्या पुस्तक प्रकाशनावेळी लतादीदींनी क्रिकेटचे असे तपशीलवार विश्लेषण केले, की अनुभवी क्रीडापटूही थक्क झाले. आणि याच सभागृहात, एकदा त्यांनी मा. गृहमंत्री अमित शहांसोबत भारतीय संगीताच्या इतिहासावर केलेले सखोल चिंतन — असा शेलारजींनी उल्लेख करत म्हटलं — “त्यांचा आवाज अमर होता, पण त्यांची बुद्धीही तितकीच अद्वितीय होती.”

यानंतर सभागृहात एक राजेशाही शांतता उतरली. अक्कलकोट संस्थानचे स्वामी जंजमेयराजे विजयसिंहराजे भोसले महाराज अत्यंत नम्रतेने उभे राहिले आणि म्हणाले —“इथे उपस्थित राहणे ही माझ्यासाठी आशीर्वादासारखी अनुभूती आहे. मंगेशकरांसारख्या दिग्गज कुटुंबाकडून स्नेह आणि आशीर्वाद मिळणे — हाच माझा सन्मान आहे.”हे आशीर्वाद नव्हते — हे कृतज्ञतेने झुकलेलं मानवी नम्रतेचं सौंदर्य होतं.

आणि मग वारसा झाला संकल्प.मास्टर दीनानाथ मंगेशकर स्मृती प्रतिष्ठानतर्फे जाहीर करण्यात आले की — सन १९८८ मध्ये स्थापन झालेल्या या विश्वस्त संस्थेने गेली ३६ वर्षे दि. २४ एप्रिल रोजी मास्टर दीनानाथजींच्या पुण्यतिथीचे स्मरण अत्यंत निष्ठेने साजरे केले आहे. आतापर्यंत २२५ हून अधिक मान्यवरांचा सन्मान झाला आहे आणि अनेक कलावंतांना मदतही करण्यात आली आहे.

सन २०२२ पासून ‘लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार’ही प्रदान केला जात आहे. पंतप्रधान नरेंद्र मोदी, आशा भोसले, अमिताभ बच्चन आणि कुमार मंगलम बिर्ला हे आजवरचे मानकरी.

रविंद्र जोशी यांनी पुढे सांगितले — की दरवर्षी २८ सप्टेंबरला, पुण्यात लतादीदींच्या जन्मदिनानिमित्त आयोजित होणारा संगीताचा सोहळा अखंडितपणे सुरू राहावा म्हणून एक संकल्पनिधी / कायमस्वरूपी निधी उभारण्यात येत आहे. या निधीवरील व्याजातून या सोहळ्याचे सर्व खर्च उचलले जातील. ह्रदयनाथजींनी स्वतः रु.२५ लाखांची देणगी प्रथम नोंदवली. भारती मंगेशकर, उषा मंगेशकर, ह्रदयनाथ मंगेशकर, आदिनाथ मंगेशकर, स्वामी जंजमेयराजे भोसले, रविंद्र जोशी, शिरीष रैरीकर आणि निष्कळ लटाड या समिती सदस्यांच्या देखरेखीखाली हा उपक्रम पार पडेल.

कार्यक्रमाचा शेवट टाळ्यांनी झाला नाही — तर ओलावलेल्या डोळ्यांनी, जपून धरलेल्या शांततेने आणि दुमदुमणाऱ्या भावनेने. काही आवाज थांबत नाहीत. ते विरून जात नाहीत. ते हवेचा श्वास होतात — आणि संगीत थांबल्यानंतरही जगत राहतात.

  

‘दिदी आणी मी’ — संगीत, स्मृती आणि स्नेहाचा सोहळा, पं. ह्रदयनाथ मंगेशकर यांनी भारतरत्न लता दीदींच्या प्रेम व परंपरेला दिलेली कृतज्ञ अभिवादनाअंतर्गत त्यांच्या ८९ व्या वर्षात प्रवेशाचा भावपूर्ण उत्सव

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Pakkhi Hegde’s Chhath songs ‘Chhathi Maiya Ke Baratiya’ and ‘Nirkhi Nirkhi Thakta Nayanwa’ are a hit on Beyond Music Bhojpuri

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पाखी हेगड़े का छठ गीत ‘छठी मईया के बरतिया’ और ‘निरखी निरखी थकता नयनवा’ की धूम बियॉन्ड म्यूजिक भोजपुरी पर

अभिनेत्री और फिल्म निर्मात्री पाखी हेगड़े को इस बार के छठ पूजा पर अपार खुशी मिली है। उनके दो छठ गीत ‘छठी मईया के बरतिया’ और ‘निरखी निरखी थकता नयनवा’ को छठ पूजा में बेपनाह प्यार मिला है। बता दें कि लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा के शुभ अवसर पर पाखी हेगड़े ने दो छठ गीत ‘छठी मईया के बरतिया’ और ‘निरखी निरखी थकता नयनवा’ का निर्माण किया है, जिसे बियॉन्ड म्यूजिक भोजपुरी के ऑफिसियल यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया गया है। पहले छठ गीत ‘छठी मईया के बरतिया’ को खुद पाखी हेगड़े ने अपनी मधुर आवाज में गाकर सबका मन मोह लिया है। गीतकार विनय बिहारी के लिखे इस गीत को संगीतकार टिंकू तूफ़ान ने मधुर संगीत दिया है। वीडियो डायरेक्टर राजा बाबू, डीओपी रंजीत के. सिंह और राहुल हैं। प्रोडक्शन रुद्रा प्रोडक्शन और डीआई रोहित सिंह ने किया है।

इस छठगीत के वीडियो में पाखी हेगड़े ने छठ व्रती के रूप में सबका प्यार आशीर्वाद लिया है और सबका ध्यान अपनी ओर खींच ली हैं। उनके साथ इस वीडियो में गीतकार विनय बिहारी ने भी शानदार अभिनय किया है।

वहीं दूसरे छठगीत ‘निरखी निरखी थकता नयनवा’ को सिंगर अलका यादव ने गाया है। जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। इसके वीडियो में पाखी हेगड़े ने कमाल की अदाकारी किया है। वो ग्रामीण महिलाओं के साथ श्रद्धा भक्ति भाव से छठ पूजा कर रही हैं। इस छठ गीत को गीतकार धर्मेन्द्र यादव ने लिखा है और संगीतकार अनुराग राजा ने कर्णप्रिय संगीत दिया है। कम्पोजर सुनील यादव गोलू, वीडियो निर्देशक रवि राठौड़, डीओपी राजेश राठौड़ हैं।

गौरतलब है की यह दोनों छठ गीत श्रद्धा भक्ति से भरपूर दिल को छू लेने वाला है। इन दोनों गीतों के भावुक बोल और पाखी हेगड़े की मधुर उपस्थिति का कमाल का मेल है। ये गीत छठ पूजा महापर्व की पवित्र भावना को दर्शाता है। इस दिव्य भजन के साथ आस्था, भक्ति और भोजपुरी परंपरा का जश्न मना गया है।

 

पाखी हेगड़े का छठ गीत ‘छठी मईया के बरतिया’ और ‘निरखी निरखी थकता नयनवा’ की धूम बियॉन्ड म्यूजिक भोजपुरी पर


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करोड़ों मैथिल भाषियों के लिए प्रेरणास्रोत्र हैं अनिल कुमार झा ,लगभग 5000 युवाओं को दे चुकें हैं रोजगार

करोड़ों मैथिल भाषियों के लिए प्रेरणास्रोत्र हैं अनिल कुमार झा ,लगभग 5000 युवाओं को दे चुकें हैं रोजगार

भारत के प्रत्येक बड़े शहरों में मैथिलि बोलने वालों का अपने भाषा और संस्कृति को लेकर वर्चस्व है।  मधुबनी पेंटिंग, मखाना उत्पादन और अद्भुत अतिथि सत्कार परम्परा के बाद इन दिनों देश भर में अनिल कुमार झा की खूब चर्चा हो रही है। लगभग ४५०० -५००० हजार युवाओं को  रोजगार से जोड़ने वाले अनिल कुमार कुमार झा करोड़ों मैथिलभाषियों के प्रेरणास्रोत के रूप में जाने जाते हैं।

दरभंगा जिला के एक छोटे से गांव अमीठी से निकल कर देश के सफल बिजनेश मेन के रूप में अपने आप को स्थापित करने वाले अनिल कुमार झा का एक लक्ष्य मिथलांचल के युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार से जोड़ना है। अनिल कुमार झा लगभग ३० वर्ष पहले दरभंगा से निकल के दिल्ली की ओर रुख किया और अपनी कड़ी मेहनत और ईमानदारी के वदौलत आज एक सफल बिज़नेस मैन के रूप में देश भर में विख्यात हैं। करियर में अपने आप को स्थापित करने के बाद अपने मातृ भाषा मैथिलि और मिथिला संस्कृति से विशेष लगाव होने के कारण क्षेत्र व मिथिलाभाषियों के लिए रोजगारोन्मुखी कार्यों में अपना जीवन लगा दिया।

गौरतलब है की मैथिलि भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबैधानिक लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिए , जिस से देश भर में काफी सुर्खियां बटोरी।  तब से लेकर आज तक मैथिल उत्थान के अलावा सरकारी व गैर सरकारी संस्थान को भी आर्थिक सहयोग करते आ रहे हैं।

इसके साथ ग्रामीण स्तर पर कई बेसहारा विधवाओं को सम्पूर्ण भरण पोषण करते आ रहे हैं। बिहार में बाढ़ त्रासदी के दौरान इनके द्वारा राहत कार्य आज भी याद करने योग्य है।  मैथिल बहुल इलाकों में रोजगार कैंप लगा कर व घर घर जा कर रोजगार का अलख जगाने लगे। अब तक लगभग ४५०० से ५००० से अधिक युवाओं को रोजगार से जोड़ चुकें हैं।

अटल बिहारी इंटरनेशनल ब्रॉदरहुड के सदस्य रह चुके झा जी विश्व मैथिल संघ के संयोजक रहते हुए और अखिल भारतीय मैथिल संघ के सचिव के साथ बतौर सदस्य मिथिला मिथिलांचल वासियों को दिन रात आगे बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर हैं।  मिथिला के अलग अलग संस्थाओं को उनके अच्छे कार्यों के लिए शारीरिक एवं आर्थिक मदद करते रहते हैं। आज लाखों मैथिलि भाषी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत्र बन चुके अनिल कुमार झा किसी परिचय के मोहताज नहीं है।.

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Landmark Conclave On Digital Dignity Held At Asian Law College In Collaboration With ICMEI And Cyber Humane

Landmark Conclave On Digital Dignity Held At Asian Law College In Collaboration With ICMEI And Cyber Humane

Noida, 9th May 2025: The International Chamber of Media and Entertainment Industry (ICMEI) and Asian Law College, in partnership with Cyber Humane, successfully hosted a high-impact Landmark Conclave on Digital Dignity at the Asian Law College campus. The event brought together top legal minds, cybersecurity experts, diplomats, and educators to address the most pressing concerns of our digital age under the compelling theme:
“Securing the Digital Frontier – Addressing Cyber Threats, Misinformation, and Privacy in the Age of AI, Deepfakes, and Global Surveillance.”

The conclave featured intensive sessions, each focusing on emerging challenges surrounding cybersecurity, ethical digital conduct, misinformation, surveillance technologies, and data privacy. With the rapid evolution of artificial intelligence and digital tools, the discussions underscored the urgent need for robust policy frameworks, global cooperation, and public awareness to preserve digital dignity.

The inaugural session was graced by distinguished dignitaries including: Dr. Sandeep Marwah, Chancellor of AAFT University and President of Asian Law College, IPS Deepak Kumar Kedia, who shared critical insights on digital crime and policing, Hon. Justice Rajesh Tondon, who explained judicial perspectives on digital rights, Diplomat IFS Maya Sherman from Israel, who highlighted the global scope of cyber threats, Dr. Pavan Duggal, Senior Advocate, Supreme Court of India, who expressed concern over legal preparedness in the face of evolving cyber threats, and  Senior Advocate Pradeep Rai, Supreme Court of India, who emphasized public responsibility in safeguarding digital dignity.

Dr. Deepika Saini, who delivered the vote of thanks on behalf of Asian Law College, All dignitaries were honoured with commemorative mementos in recognition of their contributions to digital ethics and national dialogue on cyber governance.

Dr. Sandeep Marwah remarked, “As technology reshapes our societies, we must ensure that legal frameworks and ethical standards evolve at the same pace. This conclave is a step toward creating awareness, facilitating dialogue, and driving action to uphold the dignity of individuals in digital spaces.”

The inaugural session was followed by three high-powered panel discussions featuring industry experts, thought leaders, and a skilled moderator. These sessions explored topics such as regulatory frameworks, cyber hygiene, AI accountability, and the future of digital rights, laying a solid foundation for long-term discourse and policy recommendations.

The conclave was widely appreciated for its timeliness, relevance, and impactful deliberations—setting a new benchmark in legal and digital thought leadership.

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